स्पर्श ...

एक दीप जलायें
चल तिमिर के पार चलें

वहाँ जन्में
जहाँ कभी हम
अस्तित्व में थे ही नही

स्पर्श
शब्दों का
खिलाकर करे
वो जमीन पैदा
जहाँ खुशबू ही खुशबू हो !

7 comments:

  1. shandar marmsparshi srijan ..badhayiyan ji

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  2. वहाँ जन्में
    जहाँ कभी हम
    अस्तित्व में थे ही नही .... मैं तैयार हूँ :)

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  3. बिलकुल....
    नववर्ष में ऐसा ही कुछ कर जाएँ हम...

    नववर्ष मंगलमय हो संध्या जी..
    अनु

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  4. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥



    स्पर्श शब्दों का खिलाकर
    करें वो ज़मीन पैदा
    जहां ख़ुशबू ही ख़ुशबू हो !

    वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !
    क्या बात है !
    ज़मीन पैदा करना ... बहुत बड़ी बात है !
    :)

    आदरणीया संध्या आर्य जी
    सुंदर कविता के लिए बधाई !


    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
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  5. अति सुंदर कृति
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    नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

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  6. ऐसी दुनिया हम सभी के लिए बना दीजिए न प्लीज !

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