उम्मीद से है दरख़्त अब

ठहरा हुआ आसमान
गहराती हुई पृथ्वी
सबकुछ बिखरता हुआ 

पिघलता हुआ बर्फ
हम कहाँ और कैसे ठहरे
सवाल ही रहा

ऐसी उफान नदियों में कि
सूखती रही उम्मीद 
लहरों के संग 

जंग में सियासत या
सियासत में जंग
बदल रहा है सबकुछ
अपने धूरी पर  

आसमान नीला रहे और
उडान मिलें परिंदो को
उम्मीद से है दरख्त अब !!

11 comments:

  1. नीला आसमान भी मिले तो बड़ी बात हो परिंदों की उड़ान के लिए उन्मुक्त खुला आसमान भी मिले तो बड़ी बात हो ......बहुत खूब

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. उम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति....

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  4. nice lines."pr kte parinde hi hai hm khusnasi, khayale- vistre
    makhmalm nhi rakhte.....

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  5. आज जड़ों को ट्रीटमेंट की, बड़ी जरुरत है भाई |
    पर्वत करने लगे ईर्ष्या , देख पेड़ की बढ़ी उंचाई |
    गहराई में जड़े जा घुसीं, बहुतों को यह रास न आया |
    करे दिखावा ढोंगी सारे, चाट रहे दीमक की नाईं ||

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  6. आसमान नीला रहे और
    उडान मिलें परिंदो को
    उम्मीद से है दरख्त अब !!

    ये उम्मीद ही तो है एक बस ...
    सुंदर अभिव्यक्ति !

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